Indur Hindi Samman Avm Kavi Sammelan Slideshow: इंदूर’s trip was created by TripAdvisor. Create a free slideshow with music from your travel photos.

Thursday, April 28, 2011

साहित्य का सच वास्तविक सच से भिन्न होता है : संजीव 
 
        "जबानें दिलों को जोड़ने के लिए होती हैं तोड़ने के लिए नहीं"  ये उदगार पूर्व अध्यक्ष महाराष्ट्र राज्य उर्दू  अकादमी के डा. अब्दुल सत्तार दलवी ने २३ अप्रैल २०११ को बेंक्वेट हाल, गोरेगांव [पूर्व] मुम्बई में हेमंत फ़ाउंडेशन द्वारा आयोजित विजय वर्मा कथा सम्मान समारोह में व्यक्त किये। उन्होंने आगे कहा- 'नौजवनों की हौसला अफ़जाई वक्त की अहम जरूरत है और यह काम हेमंत फ़ाउंडेशन बखूबी कर रहा है।' हिन्दी उर्दू के साहित्यकारों, टी.वी. कलाकारों, साहित्यप्रेमियों , मीडिया प्रेस से संलग्न तथा बाहर से आये हुए साहित्यप्रेमियों की उपस्थिति में तालियों की गड़गड़ाहट तथा संगीत की सुमधुर ध्वनि के बीच वर्ष २०११ का 'विजय वर्मा कथा सम्मान' मनोज कुमार पांडे [लखनऊ] को उनके कथा संग्रह 'शहतूत' के लिए तथा ' हेमंत स्मृति कविता सम्मान' वाजदा खान [दिल्ली] को उनके कविता संग्रह 'जिस तरह घुलती है काया' के लिए प्रमुख अतिथि श्री संजीव [कार्यकारी संपादक हंस] एवं अध्यक्ष श्री अब्दुल सत्तार दलवी ने प्रदान किया। पुरस्कार के अंतर्गत ग्यारह हजार की धनराशि,शाल,पुष्पगुच्छ, एवं स्मृति चिह्न प्रदान किया गया।
कार्यक्रम का आरंभ दीप प्रज्वलन एवं सरस्वती वंदना से हुआ। संस्था के निदेशक श्री विनोद टीबड़ेवाला एवं श्री जे.जे.टी. विश्वविद्यालय झुंझनू के कुलपति ने इस समारोह पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा- उन्हें गर्व है कि उनका विश्वविद्यालय ऐसे साहित्यिक समारोह से जुड़ा है। उन्होंने दोनों पुरस्कृत रचनाकारों का सम्मान करते हुए उन्हें युवा पीढ़ी का मील का पत्थर बताया।
संस्था की अध्यक्ष व प्रबन्धन्यासी साहित्यकार संतोष श्रीवास्तव ने ट्रस्ट का परिचय देते हुए उसकी गतिविधियों के बारे में बताते हुए कहा कि ट्रस्ट शीघ्र ही हिन्दी-उर्दू मंच तैयार करेगा ताकि दो जबानें मिलकर नए पथ का निर्माण करें।
समारोह में पुरस्कृत कविता संग्रह पर डा. करुणाशंकर उपाध्याय ने अपने वक्तव्य में कहा- वाजदाखान की कविताएं चित्र से परिपूर्ण हैं और कविताएं बिम्ब पूर्णता को दर्शाती हैं। 
लेखिका डा. प्रमिला वर्मा ने संयोजक श्री भारत भारद्वाज द्वारा भेजी गई संस्तुति प्रस्तुत की। सम्मानित रचनाकार  वाजदाखान ने अपनी रचनाओं का पाठ किया एवं अपने वक्तव्य पर बोलते हुए कहा - चित्रकला मेरा क्षेत्र रहा, मगर कविताओं को लिखना पढ़ना हमेशा आकर्षित करता रहा। कविताएं अन्तश्चेतना के किसी हिस्से को बड़ी ही आहिस्ता से स्पर्श करती हैं। यह जादुई स्पर्श कई-कई दिनों तक वजूद पर छाया रहता है।
मनोज कुमार पांडे ने अपने वक्तव्य में कहा कि मैं विजय वर्मा कथा सम्मान मिलने पर खुश हूं। और सचमुच सम्मानित महसूस कर रहा हूं। इसलिए भी क्योंकि यह सम्मान अपनी शुरूआत से ही विश्वसनीय रहा है और कई ऐसे कथाकारों को मिल चुका है जिनकी रचनाएं मैं गहरे लगाव के साथ पढ़ता रहा हूं। 
प्रमुख अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार श्री संजीव ने अपने रोचक वक्तव्य में कहा- साहित्य का सच वास्तविक सच से भिन्न होता है। प्रगटत: मिथ्या सा लगता है लेकिन वह उस वास्तविक सत्य से ज्यादा बड़ा सत्य होता है। उदाहरण स्वरूप उन्होंने रवीन्द्रनाथ ठाकुर की काबुलीवाला का जिक्र किया जिसमें रहमत नायक जेल में १२ वर्ष गुजार कर जब घर लौटता है तो अपनी ५ वर्ष की बेटी के लिए चूड़ियां ले जाता है । उसके लिए बेटी आज भी पांच वर्ष की है। रहमत के लिए वक्त वहीं ठहर गया है। उन्होंने कहा कि ''अपने यहां किसी भी ऐतिहासिक सच से रामायण-महाभारत का सच समाज को ज्यादा प्रभावित करता रहा है।''
मनोज कुमार पांडे की कहानी 'पत्नी का चेहरा' आवाज तथा रंगमंच की दुनिया के प्रखर कलाकार सोनू पाहूजा ने अपने रोचक अंदाज में प्रस्तुत की।
कार्यक्रम का संचालन कवि आलोक भट्टाचार्य ने किया एवं समारोह का समापन लेखिका सुमीता केशवा के आभार से हुआ।                                                                             सुमीता केशवा

Monday, April 4, 2011




चित्तोड़गढ़ में 'नव संवत्सर:आज़ के वैश्विक 
परिप्रेक्ष्य में' विषयक संगोष्ठी की रपट

''.समय सभी के साथ एक सा रहता है.हम ही अनुकूल-प्रतिकूल बन पड़ते हैं.बीते बीस सालों में हमारा भारत देश ही समय के प्रतिकूल स्तिथि में रहा है.विचार गोष्ठी के बहाने आज़ हमें देश को अनुकूल बनाने की बात करनी है. वैश्वीकरण ने हमारा सोच,विचार और विरासत सबकुछ बदल कर रख दिया है.कई देशों का आत्मविश्वास तक तोड़ दिया है.इन सालों में हमारे दिमाग पर सोचा समझा हमला किया गया हैं.हमारे देश के वैविध्य को कौन नहीं जानता है.कई तरह के आक्रमणों के बावजूद बनी रही हमारी संस्कृति ही हमारे लिए अकूत खज़ाना है.भारत की वैदिक संस्कृति के प्रति नतमस्तक नोबल विजेताओं को देखकर अब तो कुछ सीखना चाहिए.दूजी और हम हैं कि इस बात पर ही मरे जा रहे हैं कि विदेश से क्या आया.सार रूप में कहे तो आज़ हमारा नज़रिया बदलने की बहूत बड़ी ज़रूरत हैं.हम वैचारिक और नैतिक रूप से निर्धन और निर्बल हो चुके हैं.असल में हमने हिन्दुस्तानियों की मानसिक ताकत को ही सबकुछ मान लिया है.जबकी भारतीय मेधा की विश्वा स्तर पट नई पहचान स्थापित हुई वहीं नैतिकता के निम्नतम स्तर भी सामने आए''|
ये विचार विज़न कोलेज ऑफ़ मेनेजमेंट के सहयोग से रेलवे स्टेशन रोड़ स्थित जैन धर्मशाला में नव संवत्सर:आज के वैश्विक परिप्रेक्ष्य में' विषयक संगोष्ठी के आधार कथन के रूप में गोष्ठी संयोजक डॉ. ए.एल.जैन ने कहे.अपनी बात को आधार देने हेतु जैन ने अपने सम्पादन में बनी तीन लघु फ़िल्में भी प्रदर्शित की,जिनमें 'देश की पुकार','भारत क्या है?' और 'भारत का सोर्ड विश्लेषण' शामिल हैं.ये फिल्म मेवाड़ विश्वविध्यालय के प्राध्यापक विभोर पालीवाल,जे.रेड्डी और विज़न स्कूल के प्राध्यापक राहुल जैन ने निर्मित की.अंत में डॉ. जैन ने अपनी बात में वक्ताओं का भरापूरा परिचय दिया.इससे पूर्व नगर के गीतकार अब्दुल ज़ब्बार ने एक सरस गीत पढ़ा,जिसे सभी उपस्थित प्रबुद्धजनों ने बहुत सराहा.साथ ही डॉ. योगेश व्यास ने इस गोष्ठी से जुड़े और भी कड़ीवार आयोजनों की रूपरेखा सभी के बीच रखी.|
युवा और बुज़ुर्ग वक्ताओं के पांच सदस्यीय दल में से शुरुआत रामधारी सिंह दिनकर पर शोधरत रेणु व्यास ने की.उन्होंने काल जैसे शब्द के कई अर्थ ज़ाहिर करते हुए अपने ढंग से गोष्ठी को दिशा दी.उन्होंने अपने वक्तव्य में कई रचनाकारों को शामिल करते हुए तथ्यात्मक बातें की गयी.उन्होंने कहा की सभ्यताओं को संघर्ष से नहीं जीता जा सकता ,न ही शक्ति के बल बूते.ये भारत ही हो सकता है जहां कई सारे संवत और कलेंडर प्रचलित हैं.इस बहुविध परम्पराओं वाले इस देश में एक भी कलेंडरअपने आप में पूरा नहीं है.उन्होंने भारतीय नव वर्ष को हिन्दू नव वर्ष जैसी उपमा देना बहुत चिंताजनक बताया.साथ ही वे कहती ही कि भौतिकता के साथ ही मानसिक रूप से भी भारत ने प्रगति की है.हमारे देश में भौतिकता के साथ अध्यात्म का समन्वय बेहद बेजोड़ है.ये ही हमारे भारतीय नवजागरण का सबसे बड़ा मूल्य साबित हुआ है|
दूजे वक्ता के रूप में जिला कोषाधिकारी हरीश लढ़ढ़ा ने कहा कि हमारे राष्ट्र में भांत-भांत के जाति और व्यावसायिक वर्ग है उनके लिए इस वर्ष का अलग अलग अर्थ रहा है.मगर वैश्विक रूप से चिंतन करें तो बात शक्तिशाले होने से जुडी है जो आर्थिक,सांस्कृतिक रूप से बड़ा है सभी उसकी ही बात मानते हैं. उसके ही रंग में सभी डूब रहे हैं.ज़रूरत इस बात की है कि हम भी अपनी सांस्कृतिक परम्परा को ठीक ढंग से अपनी संतानों में उंडेल पाएं.बड़ी अजीब बात है सब कुछ अब अर्थ के हिसाब से लगने लगा हैं.वे अपनी पूरी बात में देश के प्रति किसी भी प्रकार के हमले जैसी हालत से बेचिंता नज़र आए|
तीजे वक्ता के रूप में वरिष्ठ अधिवक्ता कैलाश झंवर ने देश के लिए इन अवनति की पराकाष्ठा वाले हालातों में भी निराश नहीं होकर फिर से कुछ गुज़रने के लिए चिंतन का आव्हान किया.उन्होंने सत्ता,धन और देश की दशा के बीच के समीकरण को सपाट गति से विश्लेषित किया.अपने भाषण में झंवर ने कहा कि आज के आदमी का चिंतन जाता रहा.अब एक बार फिर से स्वतन्त्रता आन्दोलन की ज़रूरत हैं.भौतिक प्रगति के समान्तर हमें वैचारिक दरिद्रता भी मिटानी होगी.वे कहते हैं कि नेतृत्वकर्ता ही दिशाहीन है,ये बेहद चिंताजनक हालात को इंगित करता है|
इस अवसर पर जे.के.सीमेंट के वरिष्ठ सलाहकार ए.बी.सिंह ने आम बोलचाल की भाषा में हमारे ही बीच के लोगों की मानसकिता के उदाहरण देते हुए देश के बारे में कई ज़रूरी मुद्दे उठाए एवं समूह और कर्म की ताकत को आवश्यक बताया.और अंत में सेवानिवृत कोलेज प्राचार्य प्रो. डी.सी.भाणावत ने अपनी अंग्रेज़ी और हिंदी कविता के सहारे रसीला उद्बोधन दिया.युवा पीढी के गलत हाथों में दोहन और टी.वी. प्रोग्राम में नारी पर छींटाकसी के साथ ही कई विलग मुद्दों पर भी उन्होंने अपनी बातें कही.
गोष्ठी के अंतिम भाग में भारतीय नववर्ष आयोजन समिति के सह सचिव और सी.ए. सुशील शर्मा ने आभार जताया.राष्ट्रगान के साथ ही आयोजन पूरा हुआ.इस सम्पूर्ण गोष्ठी का संचालन 'अपनी माटी' वेबपत्रिका के सम्पादक और संस्कृतिकर्मी माणिक ने किया.दो घन्टे तक चली गोष्ठी में नगर के लगभग सभी वर्गों और संस्थाओं के शीर्षस्थ पदाधिकारी,कई शैक्षणिक संथाओं के प्रधान और साहित्यकार सहित दो सौ प्रतिभागी मौजूद थे.
चित्तोड़गढ़ से माणिक की रिपोर्ट