Indur Hindi Samman Avm Kavi Sammelan Slideshow: इंदूर’s trip was created by TripAdvisor. Create a free slideshow with music from your travel photos.

Sunday, December 26, 2010

'हिंदी भाषा' अपनो में ही पराई
  • भारत को मुख्यता हिंदी भाषी माना गया है। हिंदी भाषा का उद्गम केन्द्र संस्कृत भाषा है। लेकिन समय के साथ संस्कृत भाषा का लगभग लोप होता जा रहा है। यही हाल हिंदी भाषा का भी हो सकता है, अगर इसके लिये कोई सार्थक प्रयास नहीं किए गए तो। भारतीय संविधान के तहत सभी सरकारी और गैर सरकारी दफ्तरों में हिंदी में कार्य करना अनिवार्य माना गया है। लेकिन शायद ही कहीं हिंदी भाषा का प्रयोग दफ्तर के कायों में होता हो। हर क्षेत्र में अंग्रेजी भाषा का बोलबाला है। किसी को अंग्रेजी भाषा का ज्ञान नहीं तो उसको नौकरी मिलना मुश्किल होता है। जबकि यह गलत कृत्य है सरासर भारतीय संविधान की अवहेलना है। सच पूछिए तो भारतीय संस्कृति की यह धरोहर संकट में है और इसके विकास के नाम पर अब केवल पाखंड हो रहा है। जिस हिंदी ने भारतीय हिंदी सिनेमा को अपनी भाषा शैली और संवादों से समृद्धशाली बनाया है उसकी ताकत को ऐसे नज़रअंदाज किया जा रहा है जैसे कि वह उपयोगी नही है बल्कि परित्यक्ता है।
    भारत वर्ष में प्रतिवर्ष हिंदी दिवस 14 सितम्बर को मनाया जाता है। चौदह सितंबर 1949 को संविधान सभा ने एक मत से निर्णय लिया कि हिंदी ही भारत की राष्ट्रभाषा होगी। इसी महत्वपूर्ण निर्णय के महत्व को प्रतिपादित करने और हिंदी को हर क्षेत्र में प्रसारित करने के लिये राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा के अनुरोध पर सन् 1953 से संपूर्ण भारत में प्रतिवर्ष 14 सितंबर को हिंदी-दिवस के रूप में मनाया जाता है। लेकिन सिर्फ भारत में ही 14 सितम्बर को हिंदी दिवस मनाया जाता है, जबकि विश्व हिंदी दिवस प्रतिवर्ष 10 जनवरी को मनाया जाता है। इसका उद्देश्य विश्व में हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिये जागरूकता पैदा करना और हिंदी को अन्तराष्ट्रीय भाषा के रूप में पेश करना है। विदेशों में भारत के दूतावास इस दिन को विशेष रूप से मनाते हैं। सभी सरकारी कार्यालयों में विभिन्न विषयों पर हिंदी में व्याख्यान आयोजित किये जाते हैं।
    जब भारतवर्ष स्वतंत्र हुआ था तब भारतवासियों ने सोचा होगा कि उनके आजाद देश में उनकी अपनी हिंदी भाषा, अपनी संस्कृति होगी, लेकिन यह क्या हुआ? अंग्रेजों से तो भारतवासी आजाद हो गए, पर अंग्रेजी भाषा ने भारतवासियों को जकड़ लिया। हिंदी के मनीषियों लेखकों और साहित्यकारों ने हिंदी आंदोलन से जो सफलताएं हासिल की है उनमें भारत की आजादी भी प्रमुख है। देश में गैर हिंदी भाषा-भाषियों ने भी हिंदी भाषा को राष्ट्रीय एकता का एक सेतु कहा है। भारत के बाहर आज दुनिया में अमेरिका जैसे देश ने अपने यहां हिंदी के विकास के लिए बजट में भारी धन की व्यवस्‍था की गई है।
    भारतीय संविधान के अनुसार हिंदी भाषी राज्यों को अंग्रेजी की जगह हिंदी का प्रयोग करना चाहिए। महात्मा गांधी के समय से राष्ट्रभाषा प्रचार समिति दक्षिण भारत नाम की संस्था अपना काम कर रही थी। दूसरी तरफ सरकार स्वयं हिंदी को प्रोत्साहन दे रही थी यानी अब हिंदी के प्रति कोई विरोधाभाव नहीं था।
    अंग्रेजी विश्व की बहुत बड़ी जनसंख्या में बोली जाने वाली भाषा है। यह संयुक्त राष्ट्रसंघ की प्रमुख भाषा है। लेकिन भारतवासियों को अंग्रेजी का प्रयोग खत्म कर देना चाहिये क्योंकि यह सच है कि यह हमें साम्राज्यवादियों से विरासत में मिली है।अंग्रेजी भाषा का प्रयोग भारतवर्ष में हिंदी भाषा की अपेक्षा कहीं अधिक किया जाता है, क्यों? भारतवर्ष हिंदी भाषी राष्ट्र है, उसको हिंदी के प्रचार व प्रसार पर ध्यान देना चाहिये। वैसे इस विषय में हमारे कुछ बुद्धिजीवियों ने गहन विचार-विमर्श कर हिंदी भाषा का प्रचार-प्रसार व प्रयोग इंटरनेट के माध्यम से करना शुरू कर दिया है। हिंदी भाषा का प्रयोग वर्तमान में ब्लाग पर खूब किया जा रहा है। कई वेबसाइट भी हैं जो हिंदी भाषा में हैं। यह एक सार्थक प्रयास है।
    वर्तमान में नई पीढ़ी को बचपन से अंग्रेजी माध्यम के स्कूल में शिक्षा ग्रहण करने के लिये भेज दिया जाता है, वह बचपन से ही अंग्रेजी भाषा को पढ़ता व लिखता है और उसी भाषा को अपनी मुख्य भाषा समझने लगता है। क्योंकि उसको माहौल ही वैसा मिलता है। इस विषय में हमें विचार करना चाहिये। क्या इस प्रकार के रवैये से हमारी यह उम्मीद कि 'हिंदी को राष्ट्रभाषा का स्थान दिलान' कभी संभव हो पाएगा। अंग्रेजी के इस बढ़ते प्रचलन के कारण एक साधारण हिंदी भाषी नागरिक आज यह सोचने पर मजबूर है कि क्या हमारी पवित्र पुस्तकें जो हिंदी में हैं, वह भी अंग्रेजी में हो जाएंगी।
    हिंदी भाषा भारतीय संस्कृति की धरोहर है जिसे बचाना भारतवासियों का परमकर्तव्य है। ध्यान, योग आसन और आयुर्वेद विषयों के साथ-साथ इनसे संबंधित हिंदी शब्द आदि, ऐसी संस्कृति है, जिसे पाने के लिए हिंदी के रास्ते से ही पहुंचा जा सकता है। भारतीय संगीत चाहे वह शास्त्रीय हो या आधुनिक हस्तकला, भोजन और वस्त्रों की विदेशी मांग जैसी आज है पहले कभी नहीं थी। लगभग हर देश में योग, ध्यान और आयुर्वेद के केन्द्र खुल गए हैं, जो दुनिया भर के लोगों को भारतीय संस्कृति की ओर आकर्षित करते हैं, और हम उसी अनमोल संस्कृति को त्याग दूसरो की संस्कृति में ध्यान आकर्षित करते हैं। जो स्वयं हमारी हिंदी भाषा और संस्कृति से प्रभावित हैं। हम अपनी पहचान क्यों खोना चाहते है? जबकि अन्य भाषाओं से अत्यधिक सर्वोपरि हिंदी है। हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार व हिंदी भाषा की प्रगति एवं उत्थान के लिए, इसके प्रयोग को बल देने के लिये कई महापुरुषों ने अपने मत इस प्रकार दिए हैं-
    'कोई भी देश सच्चे अर्थो में तब तक स्वतंत्र नहीं है जब तक वह अपनी भाषा में नहीं बोलता। राष्ट्रभाषा के बिना राष्ट्र गूंगा है।' महात्मा गांधी
    'यदि भारत में प्रजा का राज चलाना है तो वह जनता की भाषा में ही चलाना होगा।' काका कालेलकर
    'प्रांतीय ईर्ष्या-द्वेष दूर करने में जितनी सहायता हिंदी प्रचार से मिलेगी, दूसरी किसी चीज से नहीं।' नेताजी सुभाषचन्द्र बोस
    'राष्ट्र को एक सूत्र में पिरोने वाली भाषा हिंदी ही हो सकती है।' लालबहादुर शास्त्री
    'हिंदी का प्रश्न स्वराज्य का प्रश्न है। हिंदी राष्ट्रीयता के मूल को सींचकर दृढ़ करती है।' राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन
    'हम हिंदुस्तानियों का एक ही सूत्र रहे- हमारी राष्ट्रभाषा हिंदी हमारी लिपि देवनागरी हो।' रेहानी तैयबजी
    'हिंदी से सम्पूर्ण भारत को एक सूत्र में पिरोया जा सकता है।' महर्षि दयानंद सरस्वती
    'यदि हिंदी की उन्नति नहीं होती है तो यह देश का दुर्भाग्य है।' बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय
    'राष्ट्र को राष्ट्रध्वज की तरह राष्ट्रभाषा की आवश्यकता है और वह स्थान हिंदी को प्राप्त है।' अनन्त गोपाल सेवड़े
    'राष्ट्र के एकीकरण के लिए सर्वमान्य भाषा से अधिक बलशाली कोई तत्व नहीं। मेरे विचार में हिंदी ही ऐसी भाषा है।
    ' लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक
    'यदि भारतीय लोक कला, संस्कृति और राजनीति में एक रहना चाहते हैं तो उसका माध्यम हिंदी ही हो सकती है।' राजगोपालाचारी
    'राष्ट्रीय मेल और राजनीतिक एकता के लिए सारे देश में हिंदी और नागरी का प्रचार आवश्यक है।'लाला लाजपत राय
    'हिंदी साहित्य चतुष्पुरुषार्थ धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का साधन है इसीलिए जनोपयोगी भी है।' डॉ. भगवान दास
    'निज भाषा उन्नति अहै सब उन्नति को मूल।' भारतेन्दु हरिश्चन्द्र
    'हिंदी को देश में परस्पर संपर्क भाषा बनाने का कोई विकल्प नहीं। अंग्रेजी कभी जनभाषा नहीं बन सकती।' मोरारजी देसाई
    'हिंदी प्रेम की भाषा है।' महादेवी वर्मा

    'भारत की अखंडता और व्यक्तित्व को बनाए रखने के लिए हिंदी का प्रचार अत्यन्त आवश्यक है।' महाकवि शंकर कुरूप
          कौशलेंद्र मिश्रा
             स्वतंत्र आवाज़ डाट काम से आभार सहित
          www.swatantraawaz.com

No comments:

Post a Comment