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Monday, January 31, 2011

गांधी,भीमसेन जोशी और 
श्रीकांत देशपांडे को श्रृद्धांजली 
एक ही दिन में देश के तीन दिग्गज जानकारों को स्पिक मैके आन्दोलन के बैनर तले आयोजित श्रृद्धांजली सभा के बहाने याद किया गया.तीस जनवरी,रविवार की शाम चित्तौड़गढ़ शहर के गांधी नगर स्थित अलख स्टडीज़ शैक्षणिक संस्थान में आपसी विचार विमर्श और ज्ञानपरक वार्ता के ज़रिए राष्ट्रपिता महात्मा गांधी,भारत रत्न स्व. पंडित भीमसेन जोशी के साथ ही शनिवार को ही दिवंगत हुए किराना घराना गायक श्रीकांत देशपांडे को हार्दिक श्रृद्धांजली दी गई.आयोजित सभा के सूत्रधार 'अपनी माटी' वेब पत्रिका के सम्पादक माणिक ने विषय का आधार रखते हुए महात्मा गांधी के हित रामधारी सिंह दिनकर की लिखी कुछ कविताओं का पाठ किया.बाद में  कविताओं के अर्थ भी बहुत देर तलक विमर्श का  हिस्सा रहे 
प्रमुख वक्ता के रूप में वरिष्ठ अधिवक्ता भंवर लाल सिसोदिया ने  इस अवसर पर गांधी दर्शन को आज के परिप्रेक्ष  में किस तरह से अपनाया जा सकता है पर विचार रखे.देश की आज़ादी के पहले से लेकर बाद के बरसों में गांधी दर्शन की ज़रूरत पर कई बिन्दुओं से विचार विमर्श हुआ.सिसोदिया ने कहा कि गांधी ने अपने काम के ज़रिए  वर्ण  व्यवस्था पर बहुत पहले से प्रहार करना शुरू कर दिया था. आज समाज में समानता और स्त्री अधिकारों की बातचीत का जितना भी माहौल बन पाया है, ये उसी विचारधारा की देन हैं. गांधी की  दूरदर्शिता में ग्राम स्वराज्य का सपना उनके प्रमुख और लोकप्रिय ग्रन्थ 'हिंद स्वराज' के पठन से भलीभांती समझा जा सकता है.सिसोदिया ने वर्ष में एक बार किसी आश्रम में पांच-छ; दिन का समय बिताने पर भी जोर दिया और कहा कि उन्होंने भीमसेन जोशी को भी  देवधर आश्रम,मुंगेर,बिहार में ही लगातार सात दिन तक सुना था,जो आज तक अदभुत और यादगार क्षण लगता है.
एच.आर. गुप्ता ने अपने उदबोधन  में अपने बाल जीवन से ही स्वयं सेवा के आन्दोलन  में मिले अनुभव बताते हुए गांधीवादी विचारकों के साथ की गई संगत को याद किया.उन्होंने यहाँ-वहाँ विचार-विमर्श की जुगाली करते रहने के बजाय अपने घर से विचार और कर्म में समानता लाने की पहल पर जोर दिया.

सभा के दूजे सत्र में सेवानिवृत प्रशासनिक अधिकारी एस.के.झा ने लब्ध प्रतिष्ठित गायक भीमसेन जोशी पर अपना विस्तृत पर्चा पढ़ा.उन्होंने उनके गाए भजन,अभंग और रागों के बारे में अपने अनुभव सुनाए.साथ ही झा ने संगीत को सुनने और समझने  के लिए लगातार अच्छी संगत की ज़रूरत व्यक्त की.गुरु शिष्य परम्परा की बात पर संगीत प्राध्यापिका भानु माथुर ने भी अपने महाविद्यालयी जीवन के बहुत से अनुभव सुनाए.इस आयोजन में मुकेश माथुर.सामजसेवी नित्यानंद जिंदल और युवा फड़ चित्रकार दिलीप जोशी ने भी अपने विचार रखे.अंत में स्पिक मैके संस्था समन्वयक जे.पी.भटनागर ने आभार ज्ञापित किया. दिवंगत आत्माओं के लिए मौन रख रखने के बात सभा पूरी हुई. 
माणिक

 
                

Friday, January 21, 2011

जमीनी सच्चाईयों से जूझती किताब

' मुझे जन्म दो मां' का लोकार्पण समारोह

मुम्बई : १५ जनवरी २०११ को जे.जे.टी यूनिवर्सिटी झुंझुनू [राज.] के तत्वावधान में चर्चित कथा लेखिका संतोष श्रीवास्तव के नारी विमर्श पर उनकी सामयिक प्रकाशन दिल्ली से सध्य प्रकाशित पुस्तक ''मुझे जन्म दो मां'' का लोकार्पण समारोह नजमा हेपतुल्ला सभागार सांताक्रुज [पूर्व] में मुख्य अतिथि डा. करुणा शंकर उपाध्याय एवं अध्यक्ष सुधा अरोड़ा द्वारा किया गया।  इसी अवसर पर हाल ही 'संगिनी' पत्रिका की संपादक और स्त्री विषयक कार्यों को अंजाम देने वाली एवं "लाडली मीडिया लाईफ़ टाईम अचीवमेंट''  से पुरस्कृत  दिव्या जैन का संस्था ने विशेष सम्मान भी किया।
      कार्यक्रम का प्रारंभ यूनिवर्सिटी के चांसलर श्री विनोद टीबड़ेवाला के स्वागत भाषण से हुआ। तत्पश्चात  पुस्तक की प्रस्तावना देते हुए कथा लेखिका प्रमिला वर्मा ने कहा कि इस पुस्तक में लेखिका स्त्रियों के लंबे संघर्षपूर्ण इतिहास से भी टकराती हैं और कहीं इस प्रक्रिया में किए गए उपायों की बखिया भी उधेड़ती नज़र आती हैं। इस पुस्तक में ३४ लेखों का संग्रह है जो देश भर के समस्त स्त्री विषयक विमर्शों को समेटता है। 
           पुस्तक की लेखिका संतोष श्रीवास्तव ने अपने मनोगत भाषण में अपने आप को खुली किताब के रूप में पेश किया। उन्होंने कहा कि मैंने कोशिश की औरत से सम्बन्धित हर क्षेत्र की पड़ताल  करने की पर बस एक अंश ही लिख पाई हूं। औरत के इतिहास को वर्तमान को लिखना कोई आसान काम नहीं है। 
      पुस्तक की विशेष चर्चा में प्रमुख वक्ता के तौर पर डा. नगमा जावेद ने पुस्तक की विवेचना की। उन्होंने कहा कि पुस्तक नारी विमर्श के सभी आयामों को प्रस्तुत करती है। इस पुस्तक में केवल वर्तमान नारी विमर्श नहीं है अपितु पिछली  सदियों से चल रहे नारी विमर्श का विस्तृत वर्णन है। लेखिका ने हर क्षेत्र की महिलाओं की समस्याओं  का अध्ययन बेहद विस्तार और गहराई के साथ प्रमाणों के आधार पर किया है। विशेष चर्चा में भाग ले रहे प्रोफ़ेसर डा. रवीन्द्र कात्यायन ने पुस्तक के पृष्ठ-दर पृष्ठ की चर्चा करते हुए इसे हिन्दी के लिए एक महत्वपूर्ण व अभूतपूर्व ग्रंथ माना। 
         पुस्तक के लोकार्पण  के पश्चात मुख्य अतिथि डा. करुणा शंकर उपाध्याय ने अपने सार गर्भित संक्षिप्त भाषण में लेखिका को इस क्रान्तिकारी कदम उठाने और कलमबद्व करने के  लिए बधाई दी और कहा कि यह सर्व स्वागतीय पुस्तक है। स्त्री विमर्श पर लिखी यह पुस्तक शोधार्थियों के लिए एक संदर्भ ग्रन्थ के रूप में जानी जाएगी। गहन चिंतन से पूर्ण यह पुस्तक नाम के अनुरूप हमारे समक्ष कई प्रश्न चिन्ह लगाती है और समाजिक परिवर्तन के ढांचे को बदलने की ओर इंगित करती है। कार्यक्रम के दौरान ही अपार प्रशंसा बटोरती इस पर जे.जे.टी. यूनिवर्सिटी के  चांसलर श्री विनोद टीबड़ेवाला ने लेखिका संतोष श्रीवास्तव को पी एच.डी की मानद उपाधि से अलंकृत करने की घोषणा की। 
        टी.वी. अभिनेता और डबिंग की दुनिया का जाना पहचाना नाम सोनू पाहूजा ने पुस्तक के कुछ महत्वपूर्ण अंशों को नाटकीय रूप में पेश किया। उन्होंने गर्भपात के समय बनाई गई अल्ट्रासांउड फ़िल्म'साइलेंट स्क्रीम' का दिल दहलाने वाला विवरण पेश किया। 
           अध्यक्षीय भाषण प्रख्यात कथा लेखिका सुधा अरोड़ा ने कहा कि महिलाएं आज पितृसत्तात्मक और पुरुष वर्चस्व के समाज में जी रही हैं। उंगलियों पर गिने जाने वाले कुछ शीर्षस्थ नामों के बूते पर यह भ्रम नहीं पालना चाहिए कि स्त्री के बड़े तबके में सशक्तीकरण हो चुका है। भारत के न सिर्फ़ गांवों और कस्बों में बल्कि महानगर में रहने वाले आम मध्यवर्गीय तबके में भ्रूण हत्या, दहेज हत्या, बलात्कार, घरेलू हिंसा और कार्यालयों में यौन शोषण विकराल रूप में है। स्त्रियों में जागरूकता लाने के लिए उनकी समस्याओं से मुठभेड़ करती और जमीनी सच्चाई से जूझती वैचारिक पुस्तक की आज सख्त जरूरत है।  संतोष की यह पुस्तक  इस कसौटी पर खरी उतरती है। 
        सुमीता केशवा ने सभी का आभार माना तथा लेखिका के लिए दो शब्द कहते हुए उन्होंने  कहा कि अब तक संतोष जी के प्यार से सराबोर उपन्यास पढ़ने को मिले हैं परन्तु अब उनकी कलम से ऐसे विस्फ़ोटक राज खुलेंगे जानकर ताज्जुब हुआ। दरअसल औरतों पर हुए जुल्मों का यह संपूर्ण दस्तावेज है। 
     आलोक भट्टाचार्य ने अपने कुशल संचालन के दौरान कहा कि संतोष ने इस पुस्तक में जिन सच्चाईयों का प्रामाणिक वर्णन किया है वह आज भी घटित हो रही है। समाज नहीं बदला है।  समारोह में शहर से तथा बाहर से आए हुए लेखक, पत्रकार  तथा साहित्य तथा साहित्य प्रेमी उपस्थित थे।   
सुमीता केशवा 

Wednesday, January 5, 2011

रेरिख़ मेमोरियल ट्रस्ट की निदेशक आदम्कोवा मैत्री पदक से सम्मानित

रूसी-भारतीय सांस्कृतिक और वैज्ञानिक संबंधों के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान करने के लिए भारत में रेरिख़ मेमोरियल ट्रस्ट की कार्यकारी निदेशक अल्योना आदम्कोवा को रूस के  मैत्री-पदक से सम्मानित किया गया है। इस बात की जानकारी भारत में रूस के राजदूत अलेक्सांदर कदाकिन ने समाचार एजेंसी रिया नोवस्ती को दी है।अल्योना आदम्कोवा स्लोवाकिया की एक नागरिक हैं और एक प्रसिद्ध भारतविद् हैं। उन्होंने अपने जीवन के कई साल सोवियत संघ और भारत में बिताए हैं।सन् 2001 में भारत में रूसी दूतावास ने अल्योना आदम्कोवा को हिमाचल प्रदेश में नग्गर नामक स्थान पर स्थित रेरिख़ मेमोरियल ट्रस्ट की मुख्य संचालक और क्यूरेटर के पद पर नियुक्त किया था। उन्होंने नग्गर स्थित संग्रहालय की इमारत में एक आर्ट्स कॉलेज खोला और बड़े पैमाने पर प्रकाशन का काम शुरू कर दिया। उन्होंने रूस के बारे में 15 पुस्तकों, रेरिख़ परिवार के सदस्यों की कई रचनाओं और फ़ोटो एलबमों का प्रकाशन किया है।
आभार सहित रेडियो रूस