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Wednesday, October 27, 2010

रचना प्रस्तुत करते हुए शायर राजीव दुआ
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निज़ामाबाद की एक रात कविताओं के नाम

निज़ामाबाद,रविवार 24 अक्टूबर की रात निज़ामाबाद  के राजस्थान भवन के प्रांगण मे गीत पूर्णिमा एवम निज़ामाबाद जिला माहेश्वरी सभा के सयुंक्त तत्वधान में शरद पूर्णिमा के अवसर कवि सम्मलेन का आयोजन किया गया .जिसका शुभारंम्भ  शहर के व्यवसायी गिरिवर लाल अग्रवाल एवम हिंदी दैनिक स्वतंत्र वार्ता के स्थानीय संपादक प्रदीप श्रीवास्तव द्वारा दीप प्रज्वल्लन के साथ हुआ .इस अवसर पार बोलते हुए श्री श्रीवास्तव ने कहा कि कविता हर भाषाओं को अपने आगोश में बांधती है.आप इसे अलग कर के नहीं देख सकते हैं.यही कारण है कि आज पुरे विश्व में हिंदी अपने यहाँ कि अपेक्षा कहीं अधिक फल-फूल रही है.
आज से पच्चीस साल पहले इसी शहर में हिंदी प्रेमियों ने
"इंदूर हिंदी समिति "की स्थापना की थी.जिसका उद्देश्य था की आहिंदी भाषी क्षेत्र में हिंदी भाषा के प्रोत्साहन के लिए कार्यक्रमों का आयोजन करना .कई कार्यक्रम हुए भी .लेकिन  कुछ समय बाद यह संस्था शिथिल पढ़ गई थी,जिसे पुनः सक्रीय किया गया है.जिसके पोर्टल www.indurhindisamitinzb.blogspot.comपार जा कर देखा जा सकता है कि केवल भारत में ही नहीं विदेशो में किस तरह लोग हिंदी के दीवाने हैं.वहीँ श्री अग्रवाल ने कवि सम्मलेन के आयोजन के लिए आयोजकों का आभार व्यक्त किया.कवि सम्मलेन कि शुरुआत श्रीमती हरबंस कौर के गीत "आज"से हुई ,जिसमे उनहोने इंसानों के बिच इन्सान खोजने का प्रयास किया.शहर के कवि घनश्याम पाण्डे ने "चांदनी रात .."में प्रेयसी को खोजने कि बात कही.श्रीमती सुषमा बोधनकर ने लोक प्रिय देश भक्ति गीत "ए-मेरे वतन के लोंगों " की तर्ज पर एक पैरोडी सुनाकर लोगों की वाहवाही लूटी.रियाज तनहा एवम रहीम कमर ने अपनी गजलों से समां बांध दिया.नांदेड(महाराष्ट्र) से आये हास्य कवि बजरंग पारीक ने अपनी हास्य रचनाओं से काव्य रसिकों को लोट-पोट कर दिया.गीत पूर्णिमा के एक संयोजक एवम कवि विजय कुमार मोदानी ने हास्य व श्रंगार रस की रचनाओं से सभी को प्रभावित कर दिया.उन्हों ने कहा कि "भावनाओं की कलम जब प्रेम रस में डूब जाती है तो वह कविता बन जाती है.देश के प्रसिद्ध शायर एवम इंदूर हिंदी समिति के अध्यक्ष राजीव दुआ ने श्रृगार रस से ओत-प्रोत एक गजल "गरीबों के एक आँगन में था ईद का चाँद ,कभी मुस्कराता तो क्या बात होती..." पर तालियों की गडगडाहट से परिसर गुन्ज्मय हो उठा.बल कवि कर्मवीर सिंह की कविताओं को श्रोताओं  ने काफी पसंद किया.नांदेड से आये कवि खटपट भेंसवी की रचना "हर बहु बेटी घर की शान होती है ,बहु भी तो बेटी के समान होती है"को लोंगों ने काफी पसंद किया.
 युवा कवि पवन पाण्डे ने माँ को अर्पित अपनी कविता से लोगों का मनमोह लिया .गीत पूर्णिमा के मुखिया एवम कवि समेलन के संयोजक सीताराम पाण्डे ने जहाँ कवि सम्मलेन का सुन्दर संचालन किया वहीँ उनकी कवित "में हूँ हिंदुस्तान" ने लोगों को मंत्र मुग्ध कर दिया.इस अवसर पर हैदराबाद से आये कवि एवम मुख्य अतिथि वेणु गोपाल भट्टल ने अपनी रचना "चिराग ऐसे जले किबेमिसाल रहे ,किसी का घर न जले यह ख्याल रहे"ने सभी को आकर्षित कर दिया.उनके द्वारा राजस्थानी शेली में प्रस्तुत रचनाओं को भी सराहा गया.इस मौके पर संस्था की ओर से उनका शाल श्रीफल दे कर सम्मानित किया गया .इस अवसर पर कवियों के  साथ मंच पर सर्वश्री गिरिवर लाल अग्रवाल.बालकिशन इन्नानी .जसवंत लाल के.शाह के साथ साथ चन्द्र प्रकाश मोदानी,नरेश मोदानी,दामोदर लाल जोशी भी उपस्थित थे.


Sunday, October 24, 2010

लंदन में हिन्दी

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लंदन के नेहरू केन्द्र में गोष्ठी के बाद बैठे हुए बाएं से दाएं – डा. अचला शर्मा (उपाध्यक्ष कथा यू.के.), कैलाश बुधवार, डा. सत्येन्द्र श्रीवास्तव, पद्मश्री आलोक मेहता, मोनका मोहता, तेजेन्द्र शर्मा (महासचिव कथा यू.के.)। खड़े हुए बाएं से दाएं – डा. हिलाल फ़रीद, दिव्या माथुर, परवेज़ आलम, डा. मधुप मोहता, शिखा वार्षणेय़।
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जब तक हिन्दी तरक्की और बेहतरी से नहीं जुड़ेगी उसे 
   उसका सही दर्जा नहीं मिल पाएगा :डा. अचला शर्मा

लन्दन. “समाचार पत्रों की इन्फ़लेटिड बिक्री संख्या की जांच होनी चाहिये। सरकारी विज्ञापन पाने के लिये समाच्रार पत्र बिक्री संख्या कहीं बढ़ा चढ़ा कर दिखाते हैं। जबकि सच यह है कि दिल्ली जैसे शहर में टेम्पो प्रिटिंग प्रेस से अख़बार ले कर चलता है और शाहदरा के किसी गोदाम में डम्प कर देता है।” यह कहना था वरिष्ठ पत्रकार एवं नई दुनियां के सम्पादक पद्मश्री आलोक मेहता का। आलोक मेहता इन दिनों लंदन यात्रा पर हैं और कल शाम वे लंदन के नेहरू केन्द्र में पत्रकारों और साहित्यकारों को सम्बोधित कर रहे थे। इस गोष्ठी का आयोजन कथा यूके एवं एशियन कम्यूनिटी आर्ट्स ने मिल कर किया था।
कथा यूके के महासचिव एवं कथाकार तेजेन्द्र शर्मा ने आलोक मेहता का परिचय करवाते हुए उनकी महत्वपूर्ण कृति पत्रकारिता की लक्ष्मण रेखा के हवाले से भारत में हाल ही में हुई घटनाओं पर भारतीय मीडिया की भूमिका पर आलोक मेहता से टिप्पणी करने को कहा – जिनमें रामजन्म बाबरी मस्जिद विवाद पर उच्च न्यायालय का फ़ैसला; कॉमनवेल्थ खेल; आतंकवाद आदि शामिल हैं।
आलोक मेहता का मानना है कि यदि हम बाबरी मस्जिद के गिराए जाने के समय की पत्रकारिता की आज की पत्रकारिता से तुलना करें तो हम पाएंगे कि मीडिया ने ख़ासे सयंम का परिचय दिया है। अब इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के संपादकों को भी हमने अपने साथ जोड़ा है और तय किया गया है कि सेसेनलिज़म से बचा जाए। सरकार को खासा डर था कि इस निर्णय के बाद दंगों की आग से फैल सकती है। मीडिया ने पुराने मस्जिद टूटने के चित्रों का इस्तेमाल नहीं किया। और कुल मिला कर समाचार कवरेज परिपक्व रहा।
आलोक मेहता ने स्वीकार किया कि कॉमनवेल्थ खेलों के कवरेज में कुछ अति अवश्य हुई, मगर यह ज़रूरी भी थी। यह ठीक है कि खेलों और भारत की छवि विश्व में कुछ हद तक धूमिल हुई, मगर इसी वजह से सरकारी मशीनरी हरक़त में आई और अंततः खेल सही ढंग से संपन्न हो पाए। उन्होंने बताया कि जब वे नई दुनियां में खेलों की तैयारी के बारे में समाचार प्रकाशित करते थे तो राजनीतिज्ञ सवाल भी करते थे कि उनके विरुद्ध क्यों समाचार प्रकाशित किए जा रहे हैं। दरअसल सरकार की हालत ऐसी है जैसे इन्सान एंटिबॉयटिक से इम्यून हो जाता है ठीक वैसे ही सरकार भी आलोचना से इम्यून हो चुकी है।
वरिष्ठ पत्रकार विजय राणा का मत था कि डी.ए.वी.पी. के माध्यम से सरकार सरकार समाचार पत्रों को विज्ञापन दे कर अपने विरुद्ध लिखने से रोकने में सफल हो जाती है। हिन्दुस्तान टाइम्स एवं टाइम्स ऑफ़ इंडिया जैसे दैत्यों को तो करोड़ों के विज्ञापन मिलते हैं। क्या ये विज्ञापन भी भ्रष्टाचार नहीं फैलाते।
मधुप मोहता का सवाल था कि सत्तर हज़ार करोड़ रुपये ख़र्च कर कॉमनवेल्थ खेल करवाए जा सकते हैं तो केवल सौ करोड़ का ख़र्चा कर के हिन्दी को संयुक्त राष्ट्र की भाषा क्यों नहीं बनवाया जा रहा। इस पर आलोक मेहता का कहना था कि इसमे राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी है। यदि सरकार 10 बड़े व्यापारी घरानों से पैसा इकट्ठा करने को कहे तो सौ करोड़ रुपये महीने भर में इकट्ठे हो सकते हैं। शिवकांत को समस्या इस बात में दिखाई देती है कि प्रधानमंत्री और सोनिया गांधी को कैसे मनाया जाए कि वे व्यापारी घरानों को इस विषय में संपर्क करें।
कथा यूके की उपाध्यक्ष डा. अचला शर्मा की चिन्ता थी कि मह्तवाकांक्षा की भाषा अंग्रेज़ी बन गई है। जब तक हिन्दी तरक्की और बेहतरी से नहीं जुड़ेगी उसे उसका सही दर्जा नहीं मिल पाएगा।
डा. सत्येन्द्र श्रीवास्तव का कहना था कि भाषा में दिनमान के ज़माने से आजतक ख़ासा परिवर्तन आ गया है। अब प्रिन्ट मीडिया की भाषा आम इन्सान की भाषा हो गई है। आलोक मेहता ने कहा कि हमें सतर्कता बरतनी होगी। हिन्दी में अन्य भाषाओं के शब्द आने से हिन्दी अधिक समृद्ध होगी मगर यह हमें सावधानी से करना होगा। जो नये शब्द हैं उन्हें हिन्दी में ज़रूर शामिल किया जाए, जैसे कि मेट्रो के लिये नया शब्द गढ़ने की ज़रूरत नहीं। मगर हिन्दी के प्रचलित शब्दों को हटा कर उनके स्थान पर अंग्रेज़ी के शब्द न थोपे जाएं।
नेहरू सेन्टर की निदेशक मोनिका मोहता ने धन्यवाद ज्ञापन दिया।
साभार:हिंद युग्म

Friday, October 22, 2010

दुनियां में हिंदी तीसरे नंबर पर

दुनियां में सर्वाधिक बोली
जाने वाली भाषाओं में
हिंदी तीसरे नंबर
 
दुनियां में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषाओं में हिंदी तीसरे नंबर पर है मगर भारत में ही उसकी दुर्दशा किसी से छुपी नहीं है। राजभाषा होने के कारण इसके नाम पर सरकारी अनुदानों और बजट की लूटखसोट तो खूब होती मगर विकास का ग्राफ निरंतर नीचे ही गिरता जा रहा है। हिंदी दिवस मनाकर हिंदी में काम करने के लच्छेदार भाषण दिए जाते हैं। हिंदी अधिकारी, जिन्हें अधिकार के साथ हिंदी के साथ नाइंसाफी करने का लाइसेंस मिला है, ही इतने सचेत नहीं हैं कि हिंदी का कल्याण हो सके। कुछ अड़चनों का रोना रोकर अपनी जिम्मेदारी निभाने की बात समझा दी जाती है। 
अंग्रेजी माध्यम से बच्चों को पढ़ाना शौक और शान है। अंग्रेजी के मुकाबले हिंदी ही क्या किसी अन्य भारतीय भाषा में पढ़ने वाले बच्चे दोयम समझे जाते हैं। अभी कुछ दिन पहले बनारस के पास अपने गांव मैं गया था। पता चला कि वहां तमाम कानवेंट स्कूल खुल गए हैं। गांव का सरकारी प्राइमरी स्कूल, जिसमें खांटी हिंदी में पढ़ाई होती, अब वीरान सा दिखता है। लोगों का तर्क है कि आगे जाकर नौकरी तो अंग्रेजी पढ़नेवालों को मिलती है तो फि हम हिंदी में ही पढ़कर क्या करेंगे। यह चिंताजनक है और देश की शिक्षा व्यवस्था की गंभीर खामी भी है।जब गोजगार हासिल करने की बुनियादी जरूरतों में परिवर्तन हो रहा है तो बेसिक शिक्षा प्रणाली में भी वही परिवर्तन कब लाए जाएंगे। सही यह है कि वोट के चक्रव्यूह में फंसी भारतीय राजनीति हिंदी को न तो छोड़ पा रही है नही पूरी तरह से आत्मसात ही कर पा रही है।
इसी राजनीतिक पैंतरेबाजी के कारण तो हिंदी पूरी तरह से अभी भी पूरे देश की संपर्क भाषा नहीं बन पाई है। अब वैश्वीकरण की आंधी में अंग्रेजी ही शिक्षा व बोलचाल का भाषा बन गई है। हिदी जैसा संकट दूसरी हिंदी भाषाओं के सामने भी मुंह बाए खड़ा है मगर अहिंदी क्षेत्रों में अपनी भाषा के प्रति क्षेत्रीय राजनीति के कारण थोड़ी जागरूकता है। तभी तो पश्चिम बंगाल जैसे राज्य में अंग्रेजी को प्राथमिक शिक्षा में तरजीह दी जाने लगी है। दक्षिण के राज्य तो इसमें सबसे आगे हैं। कुल मिलाकर हिंदी हासिए पर जा रही है।
अब तो हिंदी की और भी शामत आने वाली है। नामवर सिंह जैसे हिंदी के नामचीन साहित्यकार तक स्थानीय बोलियों में शिक्षा की वकालत करने लगे हैं।  अगर सचमुच ऐसा हो जाता है तो सोचिये कि जिन राज्यों में अब तक हिंदी ही प्रमुख भाषा थी वहीं से भी उसे बेदखल होना पड़ेगा। यह हिंदी का उज्ज्वल भविष्य देखने वालों के लिए चिंता का विषय होना चाहिए। अगर यही हाल रहा तो आंकड़ों में हिंदी कब तक पूरी दुनिया में दूलरे नंबर की सर्वाधिक बोली जानेवाली भाषा रह जाएगी। क्या रोजी रोटी भी दे सकेगी हिंदी ? सरकारी ठेके पर कब तलक चलेगी हिंदी ? देश की अनिवार्य संपर्क व शिक्षा की भाषा कब बनपाएगी हिंदी। आ रहा है हिंदी दिवस मनाने का दिन। आप भी हिंदी के इन ठेकेदारों से यही सवाल पूछिए।
विश्व की दस प्रमुख भाषाएं
१- चीनी लोगों की भाषा मंदरीन को बोलने वाले एक बिलियन लोग हैं। मंदरीन बहुत कठिन भाषा है। किसी शब्द का उच्चारण चार तरह से किया जाता है। शुरू में एक से दूसरे उच्चारण में विभेद करना मुश्किल होता है। मगर एक बिलियन लोग आसानी से मंदरीन का उपयोग करते हैं। मंदरीन में हलो को नि हाओ कहा जाता है। यह शब्द आसानी से लिख दिया मगर उच्चारण तो सीखना पड़ेगा।
२-अंग्रेजी बोलने वाले पूरी दुनिया में ५०८ मिलियन हैं और यह विश्व की दूसरे नंबर की भाषा है। दुनिया की सबसे लोकप्रिय भाषा भी अंग्रेजी ही है। मूलतः यह अमेरिका आस्ट्रेलिया, इग्लैंड, जिम्बाब्वे, कैरेबियन, हांगकांग, दक्षिण अफ्रीका और कनाडा में बोली जाती है। हलो अंग्रेजी का ही शब्द है।
३- भारत की राजभाषा हिंदी को बोलने वाले पूरी दुनियां में ४९७ मिलियन हैं। इनमें कई बोलियां भी हैं जो हिंदी ही हैं। ऐसा माना जा रहा है कि बढ़ती आबादी के हिसाब से भारत कभी चीन को पछाड़ सकता है। इस हालत में नंबर एक पर काबिज चीनी भाषा मंदरीन को हिंदी पीछे छोड़ देगी। फिलहाल हिंदी अभी विश्व की तीसरे नंबर की सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है। हिंदी में हलो को नमस्ते कहते है।
४- स्पेनी भाषा बोलने वालों की तादाद ३९२ मिलियन है। यह दक्षिणी अमेरिकी और मध्य अमेरिकी देशों के अलावा स्पेन और क्यूबा वगैरह में बोली जाती है। अंग्रेजी के तमाम शब्द मसलन टारनाडो, बोनान्जा वगैरह स्पेनी भाषा ले लिए गए हैं। स्पेनी में हलो को होला कहते हैं।
५- रूसी बोलने वाले दुनियाभर में २७७ मिलियन हैं। और यह दुनियां की पांचवें नंबर की सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है। संयुक्तराष्ट्र की मान्यता प्राप्त छह भाषाओं में से एक है। यह रूस के अलावा बेलारूस, कजाकस्तान वगैरह में बोली जाती है। रूसी में हलो को जेद्रावस्तूवूइते कहा जाता है।
६-दुनिया की पुरानी भाषाओं में से एक अरबी भाषा बोलने वाले २४६ मिलियन लोग हैं। सऊदू अरब, कुवैत, इराक, सीरिया, जार्डन, लेबनान, मिस्र में इसके बोलने वाले हैं। इसके अलावा मुसलमानों के धार्मिक ग्रन्थ कुरान की भाणा होने के कारण दूसरे देशों में भी अरबी बोली और समझी जाती है। १९७४ में संयुक्त राष्ट्र ने भी अरबी को मान्यता प्रदान कर दी। अरबी में हलो को अलसलामवालेकुम कहा जाता है।
७- पूरी दुनिया में २११ मिलियन लोग बांग्ला भाषा बोलते हैं। यह दुनिया की सातवें नंबर की भाषा है। इनमें से १२० मिलियन लोग तो बांग्लादेश में ही रहते है। चारो तरफ से भारत से घिरा हुआ है बांग्लादेश । बांग्ला बोलने वालों की बाकी जमात भारत के पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा व पूर्वी भारत के असम वगैरह में भी है। बांग्ला में हलो को एईजे कहा जाता है।
८- १२वीं शताब्दी बहुत कम लोगों के बीच बोली जानेवाली भाषा पुर्तगीज आज १९१ मिलियन लोगों की दुनिया का आठवें नंबर की भाषा है। स्पेन से आजाद होने के बाद पुर्तगाल ने पूरी दुनिया में अपने उपनिवेशों का विस्तार किया। वास्कोडिगामा से आप भी परिचित होंगे जिसने भारत की खोज की। फिलहाल ब्राजील, मकाउ, अंगोला, वेनेजुएला और मोजांबिक में इस भाषा के बोलने वाले ज्यादा है। पुर्तगीज में हलो को बोमदिया कहते हैं।
९- मलय-इंडोनेशियन दुनिया की नौंवें नंबर की भाषा है। दुनिया के सबसे ज्यादा आबादी के लिहाज से मलेशिया का छठां नंबर है। मलय-इंडोनेशियिन मलेशिया और इंडोनेशिया दोनों में बोली जाती है। १३००० द्वीपों में अवस्थित मलेशिया और इन्डोनेशिया की भाषा एक ही मूल भाषा से विकसित हुई है। इंडोनेशियन में हलो को सेलामतपागी कहा जाता है।
१०- फ्रेंच यानी फ्रांसीसी १२९ मिलियन लोग बोलते हैं। इस लिहाज से यह दुनियां में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषाओं में दसवें नंबर पर है। यह फ्रांस के अलावा बेल्जियम, कनाडा, रवांडा, कैमरून और हैती में बोली जाती है। फ्रेंच में हलो को बोनजूर कहते हैं।  
वादा आज तक पूरा नहीं हो पाया
"संविधान के अनुसार २६ जनवरी १९६५ से भारतीय संघ की राजभाषा देव नागरी लिपि में हिन्दी हो गई है और सरकारी कामकाज के लिए हिन्दी अंतरराष्टीय अंकों का प्रयोग होगा |" इस देश के संविधान ने इस देश की आत्मा अर्थात "हिन्दी" से एक वादा किया था और वह आज तक पूरा नहीं हो पाया और हिन्दी अपने इस अधिकार के लिए आज तक संविधान के सामने अपने हाथ फैला ये आंसू बहा रही है | क्या वास्तव में हिन्दी इतनी बुरी है कि हम उसे अपनाना नहीं चाहते ? ( विजयराज चौहान (गजब) chauhan.vijayraj@gmail.com के प्रकाशित उपन्यास "भारत/INDIA" के पेज १५६-१५८ ( http://hindibharat.wordpress.com/2008/08/10/11/ )
पर उपन्यास के पात्र इसी तरह से चिंता जाहिर करते हैं। मुख्य पात्र भारत द्वारा गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर स्कूल समारोह में हिंदी के संदर्भ में ये बातें कही जातीं है।
आगे इस उपन्यास के पात्र यह भी कहते हैं कि---
नहीं वह इतनी बुरी चीज नहीं है | वह इस दुनिया कि सबसे अधिक बोली जाने वाली तीसरे नम्बर कि भाषा है। इसकी महत्ता को भारत के अनेक महापुरुषों ने भी स्वीकार किया है।
इसकी इस महत्ता को देखकर ही एक ऐसे व्यक्ति "अमीर खुसरो" जिसकी मूल भाषा अरबी ,फारसी और उर्दू थी उसने कहा था
"मैं हिन्दुस्तान कि तूती हूँ ,यदि तुम वास्तव में मुझे जानना चाहते हो हिन्दवी(हिन्दी) में पूछो में तुम्हें अनुपम बातें बता सकता हूँ "
हिन्दी का महत्व समझते हुए ही उर्दू के एक शायर मुहम्मद इकबाल ने बड़े गर्व से कहा था कि -- 
"हिन्दी है हम वतन है हिन्दोंस्ता हमारा |"
हिन्दी के इसी महत्व को जान कर भारत के एक युगपुरूष महर्षि दया-नंद सरस्वती जिनकी मूल भाषा गुजराती थी, ने कहा था  "हिन्दी के द्वारा ही भारत को एक सूत्र में पिरोया जा सकता है। "
लौह पुरुष सरदार वल्बभाई पटेल ने और आजादी के बाद कहा था --- 
"हिन्दी अब सारे राष्ट्र की भाषा बन गई है इसके अध्ययन एवं इसे सर्वोतम बनाने में हमें गर्व होना चाहिए |"
गुरुदेव रविन्द्रनाथ ठाकुर ने जिनकी मूल भाषा बांग्ला थी | उन्होंने कहा था कि ---
"यदि हम प्रत्येक भारतीय नैसर्गिक अधिकारों के सिद्धांत को स्वीकार करते है तो हमें राष्ट्र भाषा के रूप में उस भाषा को स्वीकार करना चाहिए जो देश में सबसे बड़े भूभाग में बोली जाती है और वों भाषा हिन्दी है |"
नेता जी सुभाष चंद्र बोस ने और कहा था कि --
"हिन्दी के विरोध का कोई भी आन्दोलन राष्ट्र की प्रगति में बाधक है |"
तस्वीर का दूसरा पहलू
आज हिंदी देश को जोड़ने की बजाए विरोध की भाषा बन गई है। राजनीति ने इसे उस मुकाम पर खड़ा कर दिया है जहां अहिंदी क्षेत्रों में हिंदी विरोध पर ही पूरी राजनीति टिक रई है। पूरे भारत को एक भाषा से जोड़ने की आजाद भारत की कोशिश अब राजनीतिक विरोध के कारण कहने को त्रिभाषा फार्मूले में तब्दील हो गई है मगर अप्रत्क्ष तौर पर सभी जगह हिंदी का विरोध ही दिखता है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण तो यही है कि हिंदी राज्य स्तर पर हिंदी को सर्वमान्य का सम्मान नहीं मिल पाया है। जिस देश में प्राथमिक शिक्षा तक का भी राछ्ट्रीयकरण सिर्फ हिंदी को अपनाने के विरोध के कारण नहीं हो पाया तो उस देश की एकता का सूत्र कैसे बन सकती है हिंदी। अब वैश्वीकरण के दौर में कम से कम शिक्षा के स्तर पर अंग्रेजी ज्यादा कामयाब होती दिख रही है। कानून हिंदी को सब दर्जा हासिल है मगर व्यवहारिक स्तर पर सिर्फ उपेक्षा ही हिंदी के हाथ लगी है। क्षेत्रीय राजनीति का बोलबाला होने के बाद से तो बोलचाल व शिक्षा सभी के स्तर पर क्षेत्रीय भाषाओं को मिली तरजीह ने एक राष्ट्र-एक भाषा की योजना को धूल में मिला दिया है। अगर हिंदी को राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में अपनाया नहीं गया तो निश्चित तौर पर इसकी जगह अंग्रेजी ले लेगी और तब क्षेत्रीय भाषाओँ के भी वजूद का संकट खड़ा हो जाएगा। अगर हिंदी बचती है तो क्षेत्रीय भाषाओं का भी वजूद बच पाएगा अन्यथा अंग्रेजी इन सभी को निगल जाएगी। और अंग्रेजी ने तो अब शिक्षा और रोजगार के जरिए यह करना शुरू भी कर दिया है।
लेखक: डॉ मान्धाता सिंह
http://apnamat.blogspot.com

Sunday, October 10, 2010


दक्षिण भारत में हिंदी 
पत्रकारिता का उदय 
-डॉ. सी. जय शंकर बाबु
दक्षिण भारत में हिंदी पत्रकारिता का उदय विगत शताब्दी के आरंभिक दशकों में हुआ । हिंदी प्रचार आंदोलन के आरंभ हो जाने से हिंदी पत्रकारिता की वृद्धि का मार्ग भी प्रशस्त हो गया । दक्षिण भारत में हिंदी पत्रकारिता के उदय एवं विकास संबंधी तथ्यों का आकलन स्वातंत्र्यपूर्व तथा स्वातंत्र्योत्तर युगों के परिप्रेक्ष्य में किया जा सकता है । दक्षिण भारत में स्वातंत्र्यपूर्व युग में हिंदी पत्रकारिता का समग्र अध्ययन आगे प्रस्तुत है ।
दक्षिण भारत में स्वातंत्र्यपूर्व हिंदी पत्रकारिता
भारत में जब औपनिवेशिक शासन के विरुद्ध संघर्ष छेड़ा गया और स्वाधीनता हासिल करने हेतु आंदोलन का सूत्रपात हुआ, उन्हीं दिनों में जन जागृति पैदा करने की दृष्टि से अनेक देश-भक्तों ने देश के विभिन्न प्रांतों से भारतीय भाषाओं में समाचारपत्रों के प्रकाशन आरंभ किए । इसी दौर में दक्षिण भारत में भी आज़ादी आंदोलन की गतिविधियों में तेजी लाने के लिए जहाँ एक ओर स्थानीय भाषाओं में समाचारपत्रों का प्रकाशन आरंभ हुआ, वहीं दूसरी ओर आंदोलन की सफलता हेतु भारत की जनता में भावात्मक एकता जगाने की अनिवार्यता को महसूस करते हुए दक्षिण में हिंदी भाषा प्रचार की आवश्यकता भी महसूस की गई तथा तत्परता से इस कार्य की रूप-रेखा भी बनाई गई । दक्षिण में हिंदी प्रचार की गतिविधियों के परिणामस्वरूप हिंदी पत्रकारिता का उद्भव एवं कालांतर में विकास भी संभव हो पाया ।
स्वाधीनता पूर्व युग में भारतीय पत्रकारिता का उदय शासकों द्वारा प्रशासन की सुविधा हेतु स्थापित प्रेसिडेंसी केंद्रों में हुआ था । दक्षिण भारत में मद्रास महानगर भी ऐसा एक प्रेसिडेंसी केंद्र था, जहाँ अंग्रेज़ी के अलावा तमिल, तेलुगु आदि भाषाओं में पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन आरंभ हुआ था । स्वाधीनता आंदोलन के तिलक तथा गांधी युगों के दौर में मद्रास को केंद्र बनाकर हिंदी प्रचार की गतिविधियाँ आरंभ होने के साथ ही दक्षिण भारत की हिंदी पत्रकारिता का उदय हुआ ।
सर्वप्रथम तमिल के सुप्रसिद्ध कवि सुब्रह्मण्य भारती ने अपनी तमिल पत्रिका ‘इंडिया’ के माध्यम से तमिलभाषियों से अपील की थी कि वे राष्ट्रीयता के हित में हिंदी सीखें । इस लक्ष्य की प्राप्ति हेतु उन्होंने अपनी पत्रिका में हिंदी की सामग्री के प्रकाशन के लिए भी कुछ पृष्ठ सुरक्षित रखना सुनिश्चित किया था । महाकवि भारती ने अपने तमिल पत्र के माध्यम से हिंदी भाषाई प्रेम एवं हिंदी पत्रकारिता की नींव डाली थी । मद्रास (चेन्नई) से ही दक्षिण भारत के प्रथम हिंदी पत्र का प्रकाशन हुआ सन् 1921 में । इस पत्र के उदय के समय तक हिंदी प्रचार का व्यवस्थित आंदोलन भी शुरू हो चुका था और आंदोलन के कार्यकर्त्ता के रूप में उत्तर भारत से आगत श्री क्षेमानंद राहत के प्रयासों से साप्ताहिक ‘भारत तिलक’ के प्रकाशन के साथ ही दक्षिण भारत में हिंदी पत्रकारिता का उदय हुआ । पूर्णतः हिंदी में प्रकाशित दक्षिण भारत का पहला पत्र होने कारण ‘भारत तिलक’ को ही दक्षिण भारत की हिंदी पत्रकारिता के इतिहास में दक्षिण भारत की प्रथम हिंदी पत्र के रूप में स्थान मिलना समीचीन होगा । लगभग उन्हीं दिनों में हिंदुस्तानी सेवा दल के मद्रास केंद्र की ओर से डॉ. एस.एन. हार्डिंकर के संपादन में ‘स्वयं सेवक’ के नाम से एक अंग्रेजी-हिंदी द्विभाषी पत्रिका का प्रकाशन भी आरंभ भी हुआ था । 1923 में हिंदी प्रचार आंदोलन की मुखपत्रिका के रूप में ‘हिंदी प्रचारक’ का प्रकाशन दक्षिण में हिंदी प्रचार आंदोलन की गति सुनिश्चित करने की दिशा में मील का पत्थर साबित हुआ । हिंदी प्रचार आंदोलन की पत्रकारिता का उदय भी ‘हिंदी प्रचारक’ से ही माना जा सकता है ।
मद्रास प्रेसिडेंसी केंद्र से हिंदी पत्रकारिता के उदय के लगभग एक दशक के बाद क्रमशः आंध्र, पांडिच्चेरी तथा केरल से हिंदी पत्रकारिता का उदय हुआ । कर्नाटक प्रांत में हिंदी पत्रकारिता का उदय स्वाधीनता प्राप्ति के बाद ही संभह हो पाया । इन प्रदेशों में हिंदी पत्रकारिता के उदय के कारण तथा उदय के दिनों की परिस्थितियों में विविधता व भिन्नता भी नज़र आती है । आंध्र में मुख्यतः हैदराबाद व उसके आस-पास के प्रांत निज़ाम रियासत के रूप में मुसलमान शासकों के अधीन था । आरंभ से हैदराबाद का शासन विवादों से मुक्त आदर्श प्रदेश के रूप में ख्यात् था । किंतु निज़ाम नवाब स्वभावतः अंग्रेज़ों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध बनाए रखते हुए उनकी अधीनता को स्वीकृति दे चुके थे । इसी दौर में हैदराबाद रियासत में सांप्रदायिक विद्वेश की भावनाएँ फैल गईं । निज़ाम शासकों के आशीर्वाद प्राप्त कट्टर इस्लामी उग्रपंथियों ने हिंदुओं को यातनाएँ देते हुए धर्म परिवर्तन के लिए उन पर जोर-जबरदस्ती भी शूरू कर दी थी, इतिहास के पन्नों से हमें इन घटनाओं की जानकारी मिलती है । सनातन धर्मियों के समक्ष उपस्थित खतरे को दूर करने, धर्म प्रचार-प्रसार के उद्देश्य से 1931 में श्री अर्जुन प्रसाद मिश्र कंटक के प्रयासों से मासिक हिंदी पत्रिका ‘भाग्योदय’ के प्रकाशन से आंध्र प्रांत में हिंदी पत्रकारिता का उदय हुआ । आंध्र प्रांत से आरंभिक दिनों में प्रकाशित लगभग सभी हिंदी की पत्र-पत्रिकाएँ धार्मिक - राष्ट्रीय चेतना के परिणामस्वरूप ही प्रकाशित हुई थीं । आर्य समाजीय हिंदी पत्रकारिता का उद्देश्य भी राष्ट्रीय चेतना का प्रसारण ही रहा है ।
पांडिच्चेरी (पुदुच्चेरी) प्रदेश में स्वाधीनता आंदोलन के आध्यात्मिक नेता महात्मा श्री अरविंद के आश्रम से चौथे दशक में हिंदी पत्रिका ‘अदिति’ के प्रकाशन के साथ ही हिंदी पत्रकारिता का उदय हुआ । राष्ट्रीयता के आराधक श्री अरविंद की विचारधाराओं के प्रचार-प्रसार हेतु ‘अदिति’ का प्रकाशन हुआ था । राष्ट्रीय विचारधारा को बल प्रदान करने में ‘अदिति’ की अग्रणी भूमिका रही ।
केरल की हिंदी पत्रकारिता के उदय का मूल कारण हिंदी प्रचार आंदोलन ही रहा । हिंदी प्रचार की गतिविधियों में संलग्न मलयालम भाषी हिंदी प्रेमी एवं हिंदी प्रचार आंदोलन के कर्मठ कार्यकर्त्ता श्री नीलकंठन नायर के प्रयासों से प्रकाशित ‘हिंदी मित्र’ से केरल की हिंदी पत्रकारिता का उदय माना जा सकता है । ‘हिंदी मित्र’ के प्रकाशन के बाद ही केरल से अन्य हिंदी पत्रकाओं का प्रकाशन आरंभ हुआ । हिंदी प्रचार संबंधी राष्ट्रीय महत्व के कार्य में हाथ बंटाने के उद्देश्य से केरल की मलयालम पत्रकारिता ने भी साप्ताहिक हिंदी परिशिष्ट प्रकाशित करके सद्भाना दर्शायी थी । कर्नाटक में भले ही हिंदी प्रचार आंदोलन का सूत्रपात स्वाधीनतापूर्व युग में ही हुआ था, किंतु कोई पत्र-पत्रिकाएँ उक्त अवधि में वहाँ से हिंदी में प्रकाशित नहीं हो पाईं । हिंदी प्रचारार्थ स्थापित एक संस्था की मुखपत्रिका के रूप में 1954 में प्रकाशित ‘हिंदी वाणी’ से कर्नाटक में हिंदी पत्रकारिता का उदय हुआ था ।
दक्षिण के सभी प्रदेशों में हिंदी पत्रकारिता के उदय के कारणों एवं प्रकाशित पत्र-पत्रिकाओं के उद्देश्यों के अध्ययन से यह तथ्य उजागर हो जाता है कि राष्ट्रीयता की प्रबल भावनाओं से ही दक्षिण भारत में हिंदी पत्रकारिता का उदय हुआ था । स्वाधीनता आंदोलन को अपेक्षित संबल प्रदान करने की दिशा में दक्षिण भारत की हिंदी पत्रकारिता ने भी अग्रणी भूमिका निभाई थी । हिंदी प्रचार आंदोलन, धार्मिक जागरण जैसी जो भी घटनाएँ आज़ादी आंदोलन के युग में दक्षिण में घटीं, उनका प्रमुख उद्देश्य यहाँ की जनता की सोच को उचित दिशा देकर राष्ट्रीय आंदोलन के प्रति मनसा-वाचा-कर्मणा समर्पित होने के लिए अपेक्षित भावभूमि तैयार करने में तत्पर होने के लिए विवश करने का ही रहा है, इसमें दो राय नहीं हैं । राष्ट्रीय आंदोलन के एक अभिन्न अंग के रूप में हिंदी प्रचार एवं खादी प्रचार को अपना दैनिक कार्यक्रम मानते हुए अनुशासनबद्ध कार्यकर्त्ताओं ने गाँव-गाँव में पहुँचकर राष्ट्रभक्ति की भावनाएँ फैलाई थीं । इन आंदोलनों को हिंदी पत्रकारिता से अपेक्षित प्रेरणा एवं संबल भी मिला था ।
दक्षिण भारत में स्वातंत्र्यपूर्व हिंदी पत्रकारिता की चेतना
दक्षिण भारत में हिंदी पत्रकारिता के उदय से संबंधित अध्ययन से यह बात स्पष्ट हो चुकी है कि राष्ट्रीयता के भावबोध एवं राष्ट्रीय आंदोलन के अंग के रूप में हिंदी पत्रकारिता का उदय हुआ था । हिंदी पत्रकारिता की मूल चेतना राष्ट्रीयता की भावना ही रही है । स्वाधीनतापूर्व युग में हिंदी पत्रकारिता के उदय के दिनों से लेकर स्वाधीनता की प्राप्ति तक प्रकाशित पत्र-पत्रिकाओं के उद्देश्य, उनमें प्रकाशित सामग्री तथा उन पत्र-पत्रिकाओं की देन को ध्यान में रखते हुए दक्षिण भारत की स्वातंत्र्यपूर्व हिंदी पत्रकारिता की मूलचेतना को आंकने का प्रयास अगले अनुच्छेदों में किया जा रहा है ।
दक्षिण भारत से विभिन्न केंद्रों से 1921 से 1947 तक प्रकाशित हिंदी पत्र-पत्रिकाओं को समग्र रूप में स्वाधीनतापूर्व की हिंदी पत्रकारिता के रूप में मानकर यदि हम मूल्यांकन करें तो यह बात स्पष्ट हो जाती है कि दक्षिण भारत की स्वाधीनतापूर्व हिंदी पत्रकारिता की चेतना के मूल में किस प्रकार की भावनाएँ थीं ।
स्वाधीनतापूर्व युग में दक्षिण भारत से लगभग डेढ़ दर्जन पत्र-पत्रिकाएँ हिंदी में प्रकाशित हुई थीं । आधे दर्जन अन्य भाषा (तमिल एवं मलयालम) के समाचारपत्रों ने कुछ समय तक हिंदी की समग्री को स्थान देकर भाषाई सद्भावना का उदाहरण उपस्थित किया था । तमिलनाडु से प्रकाशित हिंदी पत्रिकाओं की मूल चेतना की ओर यदि हम दृष्टिपात करेंगे तो यह बात स्पष्ट हो जाती है कि तमिलनाडु में राष्ट्रीय भावनाओं के पोषणार्थ हिंदी पत्रकारिता ने कार्य किया । तमिल की पत्र-पत्रिकाओं ने भी हिंदी की सामग्री के प्रकाशन के साथ भाषाई सद्भावना दर्शायी थी । समाचार प्रकाशनार्थ प्रकाशित पत्रों के माध्यम से राजनीतिक चेतना जगाने की कोशिशें की गई थीं । हिंदी प्रचार आंदोलन को गति देने के उद्देश्य से दो-चार पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन हुआ जिन की मूल चेतना भावात्मक एकता की प्राप्ति की दिशा में योग देने में निहित थी । साहित्यिक एवं सांस्कृतिक गरिमा को रेखांकित करने की दृष्टि से जहाँ एक ओर साहित्यिक पत्रकारिता का योग रहा जबकि सांप्रदायिक सिद्धांतों के प्रचारार्थ धार्मिक चेतना को जगाने की दृष्टि से भी दो पत्रिकाएँ प्रकाशित हुई थीं । इस विश्लेषण से यह तथ्य उद्घाटित होता है कि स्वाधीनतापूर्व युग में तमिलनाडु से प्रकाशित पत्र-पत्रिकाओं की समग्र चेतना से राष्ट्रीय आंदोलन को बल मिला था । स्वाधीनता के परम लक्ष्य की ओर अग्रसर होने की प्रेरणा एवं निष्ठा भरने में इन पत्र-पत्रिकाओं ने अवश्य ही तत्परता दर्शायी थी ।
आंध्र प्रदेश की हिंदी पत्रकारिता की पृष्ठभमि तमिलनाडु की स्थितियों से भिन्नता रखती है । यहाँ धार्मिक चेतना जगाने, सनातन धर्म प्रचारार्थ, आर्य समाजीय वैचारिक मूल्यों के प्रसारार्थ पत्र-पत्रिकाएँ प्रकाशित हुई थीं । आर्य समाजीय पत्र-पत्रकाओं का लक्ष्य जन-जागृति भी था । इन्हीं दिनों में व्यापार की रीति-नीतियों पर केंद्रित एक पत्रिका भी हैदराबाद से प्रकाशित हुई थी । हैदराबाद रियासत में इस्लाम धर्मी शासकों के दौर में जब अल्प संख्यक कट्टरपंथियों द्वारा अधिसंख्य हिंदू धर्मियों पर खतरा के बादल मंडराने लगे, तब व्यक्तिगत एवं संस्थागत प्रयासों से धार्मिक चेतना जगाकर जन जागृति लाने, तद्वारा राष्ट्रीयता की भावनाओं को सींचने का प्रयास किया गया । आरंभिक दिनों में जहाँ वैयक्तिक प्रयासों से सनातन धर्म प्रचारार्थ पत्रिकाएँ निकाली गईं, वहीं दूसरी ओर आर्य समाज की ओर से जन जागृति एवं जातीय चेतना को लक्ष्य में रखते हुए पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन किया गया । निज़ाम शासकों के विरुद्ध जनमत तैयार करने में संलग्न इन पत्र-पत्रिकाओं पर शासक पक्ष द्वारा रोक लगाए जाने के बावजूद इधर-उधर से प्रकाशित होते हुए अपने अस्तित्व को बरक़रार रखते हुए इन पत्रों ने नवचेतना को सींचकर जागृति पैदा की थी । आंध्र के इन सभी प्रयासों की समग्र चेतना भी अखंड राष्ट्र की संकल्पना हेतु धार्मिक चेतना जगाकर राष्ट्रीय चेतना में प्रवृत्त करने की थी ।
केरल की हिंदी पत्रकारिता का आदर्श हिंदी प्रचार आंदोलन को गति देने का रहा । व्यक्तिगत प्रयासों से प्रकाशित पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से भाषाई प्रेम, राष्ट्रीय एकता की भावनाओं का प्रचार किया गया था । मलयालम की पत्र-पत्रिकाओं ने भी कुछ समय तक हिंदी के परिशिष्ट छापकर भाषाई सद्भवाना का श्रेष्ठ उदाहरण उपस्थित किया था ।
पांडिच्चेरी कि पत्रकारिता की मूल-प्रेरणा भी राष्ट्रीय चेतना से ओत-प्रोत विराट व्यक्तित्व महात्मा अरविंद की रही है । दक्षिण भारत से स्वाधीनतापूर्व प्रकाशित समस्त हिंदी पत्र-पत्रिकाओं की मूल चेतना राष्ट्रीय आंदोलन को बल देने की ही थी । राष्ट्रवादियों के चिंतन को बौद्धिक एवं हृदयगत संबल देने की दिशा में अपने स्तर पर संभव योगदान इन पत्र-पत्रिकाओं ने सुनिश्चित किया था ।
दक्षिण भारत में स्वातंत्र्यपूर्व हिंदी पत्रकारिता का स्वरूप एवं प्रमुख प्रवृत्तियाँ
दक्षिण भारत में स्वातंत्र्यपूर्व युग में प्रकाशित हिंदी पत्र-पत्रिकाओं को मुख्यतः निम्नांकित वर्गों में विभाजित किया जा सकता है –
1. हिंदी प्रचार के उद्देश्य से प्रकाशित हिंदी समाचारपत्र ।
2. हिंदी प्रचार आंदोलन में संलग्न संस्थाओं की मुख-पत्रिकाएँ ।
3. हिंदी साहित्यिक पत्रिकाएँ ।
4. धार्मिक आंदोलन के अंग के रूप में प्रकाशित पत्र-पत्रिकाएँ (विभिन्न सांप्रदायिक सिद्धांतों के प्रचार हेतु प्रकाशित पत्रिकाएँ, आर्य समाज द्वारा वैदिक धर्म के प्रचार एवं जनजागृति हेतु प्रकाशित पत्र-पत्रिकाएँ भी इस वर्ग में शामिल मानी जाएंगी ।)
5. अन्य पत्र-पत्रिकाएँ ।
सर्वप्रथम मद्रास से प्रकाशित ‘भारत तिलक’ वास्तव में एक समाचारपत्र का रूप लिया हुआ था और इसमें स्थानीय समाचार प्रकाशित होते थे । हिंदी प्रचार आंदोलन के सक्रिय कार्यकर्त्ता द्वारा संपादित होने के कारण हिंदी प्रचार-प्रचार भी इस पत्र का अभिन्न उद्देश्य बन गया था । हिंदी प्रचार आंदोलन को गति देने के उद्देश्य से हिंदी प्रचार कार्य में संलग्न संस्थाओं की ओर से प्रकाशित मुख-पत्रिकाओं में हिंदी प्रचार आंदोलन की गतिविधियों की खबरें, अन्य महत्वपूर्ण सूचनाएँ, लेख आदि प्रकाशित होती थीं । ऐसी पत्रिकाओं में ‘हिंदी प्रचारक’ प्रथम पत्र है जो कालांतर में ‘हिंदी प्रचार समाचार’ के नाम से प्रकाशित होने लगी थी और आज भी उसी नाम से प्रकाशित हो रही है । ‘हिंदी पत्रिका’ के नाम से एक पत्रिका भी तमिलनाडु के तिरुच्चिरापल्ली से प्रकाशित हुई थी, जो अब भी प्रकाशित हो रही है । इन पत्रिकाओं की प्रमुख प्रवृत्तियाँ हिंदी प्रचार आंदोलन के कार्यकर्त्ताओं के लिए प्रेरक एवं उपयोगी लेख, हिंदी प्रचार की गतिविधियों से संबंधित खबरें व अन्य सामग्री प्रकाशित करने की रही हैं ।
उक्त पत्रिकाओं के अलावा हिंदी साहित्यिक पत्रिकाएँ ‘दक्षिण भारत’ और ‘दक्खिनी हिंद’ मद्रास से प्रकाशित हुई थीं । इनमें मौलिक एवं अनूदित रचनाओं के अलावा आलोचनात्मक लेख, तुलनात्मक आलेख आदि को स्थान दिया जा रहा था । हिंदी प्रचार आंदोलन में दीक्षित कार्यकर्त्ताओं द्वारा व्यक्तिगत प्रयासों से केरल में ‘हिंदी मित्र’ तथा ‘विश्वभारती’ पत्रिकाएँ प्रकाशित हुई थीं जिनके माध्यम से हिंदी में मौलिक सर्जना को संबल देने का प्रयास किया गया था ।
एक ओर जब हिंदी प्रचार की गतिविधियों में तेजी थी, उन्हीं दिनों में दक्षिण भारत में धार्मिक जागृति हेतु भी कई प्रयास किए गए । मध्व संप्रदाय के प्रचारार्थ ‘पूर्णबोध’, द्वैत सिद्धांतों के प्रचारार्थ ‘नृसिंहप्रिय’, सनातनधर्म के प्रचारार्थ ‘भाग्योदय’, दशनाम गोस्वामियों की परंपरा की पत्रिका के रूप में ‘गोस्वामी पत्रिका’, वैदिक सिद्धांतों, आर्य समाजीय मूल्यों के प्रचारार्थ आर्य समाज की ओर से कुछ पत्र-पत्रिकाएँ स्वाधीनतापूर्व युग में प्रकाशित हुई थीं । संबद्ध धर्म, संप्रदाय के सिद्धांतों पर केंद्रित सामग्री प्रकाशित करना इन पत्रिकाओं की मूल-प्रवृत्ति थी । आर्य समाज की पत्रकारिता ने राजनीतिक क्रांति की आवाज़ भी दी थी ।
स्वातंत्र्यपूर्व युग में हिंदुस्तानी सेवा दल की ओर से एक मुख-पत्र अंग्रेज़ी में प्रकाशित होती थी, जिसमें हिंदी में भी कुछ सामग्री प्रकाशित की जाती थी, जो मुख्यतः राजनीतिक चेतना के प्रसारण के लक्ष्य से प्रकाशित होती थी । निज़ाम रियासत में व्यापार विषयक एक पत्रिका भी प्रकाशित हुई थी जो स्वातंत्र्यपूर्व युग में दक्षिण भारत की हिंदी पत्रकारिता की विविधता को उजागर करती है ।
दक्षिण भारत में हिंदी पत्रकारिता के उदगम के दिनों में प्रकाशित सभी पत्र-पत्रिकाओं के समग्र मूल्यांकन से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि आरंभिक दशाब्दियों में ही पत्रकारिता के विविध आयामों का विकास हो पाया था ।
युग मानस से साभार 
http://yugmanas.blogspot.com

Tuesday, October 5, 2010

हिंदी गौरव के प्रथम प्रिंट संस्करण का विमोचन

हिंदी गौरव के विमोचन  कार्यक्रम का एक दृश्य  
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  आस्ट्रेलिया में "हिंदी गौरव" के
पहले मुद्रित संस्करण का लोकार्पण 
सिडनी2 अक्टूबर को गाँधी जयंती एवं लाल बहादुर शास्त्री के जन्मदिवस के शुभ अवसर पर सिडनी में हिंदी के क्षेत्र में एक नया स्वर्णिम अध्याय जुड़ गया| हिंदी गौरव ऑनलाइन समाचार-पत्र की सफलता के पश्चात सिडनी गुजरात भवन, सिडनी में करीब 250 लोगों की उपस्थिति में हिंदी गौरव के प्रथम प्रिंट संस्करण का विमोचन भारत के कौंसुल जनरल सिडनी माननीय अमित दास गुप्ता के कर कमलों से हुआ| इस अवसर पर विशिष्ट अतिथियों में पेरामेटा से सांसद माननीया तान्या गेडियल डिप्टी स्पीकर एन एस डब्लू संसद, माननीय सांसद फिलिप रुड़क(पूर्व मंत्री), माननीय सांसद लौरी फर्गुसन आदि थे|
कार्यक्रम का शुभारम्भ सिडनी की प्रतिष्ठित रंगमच अभिनेत्री ऐश्वर्या निधि ने सभी उपस्थित गणमान्य अतिथियों का स्वागत करते हुए किया| 2 अक्टूबर को गाँधी जी एवं लाल बहादुर शास्त्री के जन्मदिवस पर दोनों को याद करते हुए उनके जीवन एवं उनके द्वारा किये गए योगदान पर प्रकाश डाला| ऐश्वर्या निधि इस कार्यक्रम की संचालिका थी जिन्होंने इस कार्यक्रम को सफलतापूर्वक संपन्न कराया|
सबसे पहले हिंदी गौरव की सरंक्षक डॉ शैलजा चतुर्वेदी ने बोलते हुए हिंदी गौरव की ओर से सभी उपस्थितजनों को स्वागत किया एवं इस शुभ अवसर पर सभी के द्वारा अपना अमूल्य सहयोग देने के लिए सभी का कोटि-कोटि धन्यवाद दिया| आपने सिडनी में किये जा रहे विभिन्न संस्थाओं एवं व्यक्तियों का उल्लेख करते हुए सिडनी में हिंदी की यात्रा पर प्रकाश डाला| आपने हिंदी समाज के द्वारा हिंदी के क्षेत्र में किये गए कार्यों का उल्लेख किया| डॉ शैलजा चतुर्वेदी जी ने हिंदी गौरव ऑनलाइन समाचार-पत्र की सफलता का उल्लेख करते हुए इसको प्रिंट मीडिया में लाने के लिए सभी के सहयोग के लिए आभार व्यक्त किया| आपने हिंदी गौरव को हर आदमी तक पहुँचने के लक्ष्य को बताते हुए सिडनी में भारतीय समुदाय में हिंदी के महत्व को भी उजागार किया| आपने कुछ बेहद उम्दा कवितायें लोगों को सुनाई|
विशिष्ट अतिथि तान्या गेडियल ने वक्ता के रूप में महात्मा गाँधी जी के द्वारा किये गए कार्यों की सराहना की एवं उनके अहिंसा के सिद्धांत के आज के परिवेश में उल्लेख किया| आपने भारत के पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी का भी उल्लेख किया| आपने हिंदी गौरव की बढ़ती लोकप्रियता को सराहा, एवं हिंदी गौरव की टीम को विमोचन के अवसर पर हार्दिक बधाई दी|
सांसद फिलिप रुड़क(पूर्व मंत्री) एवं सांसद लौरी फर्गुसन ने इस कार्यक्रम में दो अक्तूबर के महत्व पर प्रकाश डालते हुए गाँधी एवं लाल बहादुर शास्त्री के जीवन का उल्लेख किया| हिंदी गौरव के शुभारम्भ पर बधाई दी|
मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए भारत के कौंसुल जनरल सिडनी माननीय अमित दास गुप्ता ने अपने संबोधन में कहा कि बापू सारी दुनिया में शांति चाहते थे। उन्होंने महात्माजी के संदेशों को विस्तार से समझाया और कहा कि उनकी मृत्यु के इतने लंबे समय बाद भी उनके विचार सारी दुनिया के लिए प्रासंगिक हैं। आपने लाल बहादुर शास्त्री के जीवन पर भी प्रकाश डाला| आपने हिंदी गौरव की टीम को हिंदी को ऑस्ट्रेलिया में लोकप्रिय बनाने के लिए प्रेरित किया एवं समाज में समाचार पत्र के महत्व को बताया की समाचार-पत्र समाज का आईना होता है| आपने हिंदी गौरव की टीम को सहयोग देने का आश्वासन दिया|
माननीय अमित दास गुप्ता ने अपने संबोधन के बाद हिंदी गौरव के प्रथम प्रिंट संस्करण का विमोचन किया जिसमें सांसद माननीया तान्या गेडियल डिप्टी स्पीकर एन एस डब्लू संसद, माननीय सांसद फिलिप रुड़क(पूर्व मंत्री), माननीय सांसद लौरी फर्गुसन एवं डॉ शैलजा चतुर्वेदी ने सहयोग किया|
हिंदी गौरव के विमोचन के बाद कई रंगारंग कार्यक्रम अभिनय स्कूल ऑफ़ फरफोर्मिंग आर्ट्स के सौजन्य से प्रस्तुत किये गए| इन रंगारंग कार्यक्रमों में मनमोहक नृत्य, भांगड़ा एवं देशभक्ति एवं उम्दा गायन सम्मिलित थे| इस अवसर पर दो बच्चियों तान्या एवं पेरिस द्वारा जय हो पर किया गया नृत्य ने सभी का मन मोह लिया, इसके बाद निष्ठा कुलश्रेष्ठ ने एक मिश्रित गाने पर नृत्य किया| जैसा की अधिकतर भांगड़ा के बिना कार्यक्रम अधूरा होता हैं इसमें भी एक बेहद आर्कषक भांगड़ा जसदेव भाटिया द्वारा प्रस्तुत किया| लता, राजेंद्र बालस्कर एवं भैरव वर्मा द्वारा मनमोहक गायन प्रस्तुत किये गए| नेहा दबे ने बहुत खूबसूरत नृत्य पेश किया आप सिडनी की एक होनहार डांसर है|
सिडनी में हिंदी के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान देने वाले कवि एवं लेखक अब्बास रज़ा अल्वी ने हिंदी गौरव के ओर से सभी अतिथियों एवं गणमान्य व्यक्तियों का आभार व्यक्त किया|
कार्यक्रम के समापन पर हिंदी गौरव के मुख्य संपादक अनुज कुलश्रेष्ठ ने हिंदी गौरव को सफल बनाने के लिए सभी का धन्यबाद दिया ओर इस अवसर पर हिंदी गौरव से जुड़े हुए सभी सदस्यों का उपस्थितजनों से परिचय कराया| हिंदी गौरव के तकनीकी प्रमुख हेमेन्द्र नेगी हैं| यह कार्यक्रम सिडनी गुजरात भवन में प्रथम कार्यक्रम था, इस भवन का शुभारम्भ भी हिंदी गौरव के विमोचन के साथ हुआ| यह भवन ऑस्ट्रेलिया में भारतीय समुदाय का पहला भवन हैं|
साभार :हिंद युग्म
  


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इंदूर हिंदी सम्मान से सम्मानित डॉ शेख,श्री संतोष कुमार एवम श्रीमती हरबंस कौर के साथ बाएं से दायें सर्व श्री पवन पाण्डे,मुख्य अतिथि उपायुक्त पी.ऍफ़ निज़ामाबाद,समिति के मंत्री राजकुमार सूबेदार ,अध्यक्ष राजीव दुआ एवम स्वतंत्र वार्ता निज़ामाबाद संस्करण के स्थानीय संपादक प्रदीप श्रीवास्तव.
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डॉ शेख,संतोष कुमार एवम हरबंस कौर 
इंदूर हिंदी सम्मान -2010 से सम्मानित
निज़ामाबाद. शनिवार दो अक्तूबर  की रात निज़ामाबाद के राजस्थान भवन में इंदूर हिंदी समिति द्वारा आयोजित एक समारोह में आदर्श हिंदी महा विद्यालय के पूर्व प्राचार्य डॉ ओ. एम. शेख ,नव्यभारती ग्लोबल स्कुल के प्रबंध निदेशक के.संतोष कुमार एवम सरकारी जूनियर कालेज की वरिष्ठ प्राध्यापिका श्रीमती हरबंस कौर को इंदूर हिंदी समिति के तत्वावधान में वर्ष 2009 -2010 के लिए "इंदूर हिंदी सम्मान -2010 " से सम्मानित किया गया.यह सम्मान उन्हें भविष्य निधि कार्यालय के आयुक्त मोहम्मद एच .वारसी ने प्रदान किया.सम्मान के रूप में सभी सम्मान ग्राहिताओं को शाल,श्रीफल ,स्मृतिचिन्ह एवम सम्मान पत्र प्रदान किये गए .श्रीमती हरबंस को इनरव्हील क्लब ऑफ़ निज़ामाबाद की सिक्रेटरी श्रीमती अनुपमा सूबेदार,समिति की सदस्याएं श्रीमती ज्योतस्ना शर्मा,श्रीमती रंजू दुआ एवम श्रीमती कुसुम श्रीवास्तव ने प्रदान किये.डॉ शेख को हाल में ही मद्रास यूनिवर्सिटी द्वारा उनके शोध निबन्ध "निज़ामाबाद के बाज़ार एवम मार्केटिग "पर डाक्टरेट की उपाधि प्रदान की है.जबकि के. संतोष कुमार को अपने विद्यालय में हिंदी को प्रोत्साहित करने के लिए दिया गया है. वहीँ पांच सितम्बर 2010 को आन्ध्र प्रदेश सरकार ने हरबंस कौर को उत्तम शिक्षिका के सम्मान से नवाजा था,इस लिए दिया गया है.उल्लेखनीय है कि अस्वस्थता के कारण डॉ हरीश  चन्द्र विद्यार्थी उपस्थित नहीं हो सके,जिन्हें समिति के सदस्य हैदराबाद में जा कर प्रदान करेंगे . दूसरी तरफ डॉ किसोरी लाल व्यास कि तबियत मंच पर बोलते वक्त ख़राब हो गई ,जिन्हें बाद में दिया गया.इस कार्य क्रम में समिति के अध्यक्ष राजीव दुआ,मंत्री राज कुमार सूबेदार,कोषाध्यक्ष घनश्याम पाण्डे ,हिंदी दैनिक स्वतंत्र वार्ता के स्थानीय संपादक प्रदीप श्रीवास्तव एवम तेलंगाना विश्व विद्यालय के हिंदी के प्राध्यापक पवन कुमार पाण्डे भी उपस्थित थे.पता हो कि यह प्सम्मान हर वर्ष हिंदी सेवियों को समिति प्रदान करेगी .
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